रामचरित मानस के एक प्रसंग की बात
रामचरित मानस के एक प्रसंग को विवादों में लाने की कोशिश की जा रही है जोकि निम्नवत है -
"ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी"
उपरोक्त पंक्ति में सच क्या है ? उनके अर्थ क्या हैं ? इसकी बात करते हैं.
यदि
“नारी” को प्रताड़ित करने का ईश्वरीय विधान है जैसा कि कुछ लोगों दवारा रामचरित
मानस के प्रसंग का उल्लेख करके बताने का प्रयास किया जा रहा है , तो ऐसे में सवाल उठता है
कि क्या माता पार्वती, माँ दुर्गा, माता
कौशल्या, माता
सुमित्रा, माता कैकई, माता सीता, आदि
को उनके समय के सभी पुरुषों ने प्रताड़ित किया अथवा समाज
द्वारा उनका निरादर किया गया ? या फिर उनका निरादर आज भी किया जा रहा है ?
पहली
बात तो “ताड़ना” और “प्रताड़ना” शब्द अलग – अलग हैं.
अयोध्या
में दो शब्द आज भी प्रयोग किये जाते हैं - “ताड़ना” / “ताड़ो” और “बिंदो”/”बिंदना” दोनों
का शाब्दिक अर्थ है : देखना / निगाह रखना / ध्यान
देना.
यदि आज भी आप अयोध्या के किसी पुराने रहने वाले व्यक्ति से पूछें तो वह
व्यक्ति इसके बारे में अवश्य जानता होगा.
अंत
में :
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु
मूरत देखि तिन्ह तैसी.
जय सियाराम.
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